Thursday, April 1, 2010

Taala (The Lock)


Some times, some things affect you in a way you would have never thought of. And they occur out of sheer randomness -- out of the blue! That's exactly how I came across this beautiful poem, pasted inside a bus in Mumbai, in Sept'08. I couldn't help but jot it down. Read on.
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ताला

आती है गौरय्या
और दरवाज़े के लटकते ताले पर
मारती है ठोर

कुत्ता आता है
खोलने की कोशिश में
ताबड़-तोड़ पटकता है पांव

दौड़ती हुई आती है गाय
और ज़ोर-ज़ोर से हंकरने लगती है

सोच नहीं पाता है डाकिया
किसको दे वह चिट्ठी
ताला
कई दिनों से लटका है यहाँ

पुरबईया और पछुआ हवा के झोंके
हिला नहीं पाते हैं ताले को
कितना भारी हो गया है
यह ताला

कितना अखरता है एक व्यक्ति का न होना

-- कुमार वीरेन्द्र

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